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बड़ा देव कमरूनाग, ऐतिहासिक सरनाहुली मेला

हर साल प्रथम आषाढ़ को हिमाचल प्रदेश, जिला मंडी जनपद के आराध्य बड़ा देव कमरुनाग मंदिर में सरनाहुली मेला 14-15 जून को आयोजित किया जाता है। जिसमें श्रद्धालुओं की हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ आती है, और श्रद्धालु अपनी-अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर देव दर्शन के लिए पैदल इस स्थान पर पहुंचते हैं।


श्रध्दालुओं की उमड़ आती है भीड़ 

इस बात से सभी वाकिफ़ हैं, की हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहां के हर एक गांव में देवी-देवताओं के अनेकों मंदिर देखने को मिलते हैं। इन मंदिरों की अपनी-अपनी रहस्यमई कथाएं, और महत्व देखने और सुनने को मिलती है। कुल्लू और मंडी में स्थानीय देवी-देवताओं के मंदिरों में लोगों और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था और श्रद्धा है। यहां हर एक देवी-देवता का किसी न किसी त्योहार, पर्व से नाता जुड़ा हुआ है। ऐसी ही एक रहस्यमई और चमत्कारी कमरूनाग झील हिमाचल के मंडी जिले में मौजूद है, और इस धार्मिक स्थल की स्थापना द्वापर युग में (कुंती पुत्रों) पांडवों द्वारा की गई थी।

यह धौलाधार और ब्लह रेंज की घाटियों के बीच समुद्र तल से 3,334 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है। झील तक पहुंचने का मार्ग रोहांडा से कमरूनाग तक पैदल यात्रा वाला है। जिसमें लगभग 3-4 घंटे लग जाते हैं, परंतु अब एक नया मार्ग तहसील चच्योट (गोहर) के ग्राम पंचायत शाला से जवाल होकर खूंडा तक पहुंचता है। य़ह रोड अभी छोटे वाहन योग्य (कार, जीप, बाइक) है। खड़ी पहाड़ी इलाके में लगभग (3.7 मिल) 6 किलोमीटर का रास्ता है। कमरूनाग में हर वर्ष जून महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। स्थानीय संस्कृति की झलक सबसे रंगीन धूप में दिखाते हुए स्थानीय लोग इस मेले में काफी बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं। हर साल प्रथम आषाढ़ को मंडी जिले में सरनाहुली मेले का आयोजन कमरूनाग मंदिर में 14-15 जून को किया जाता है। जिसमें श्रद्धालुओं की भीड़ हजारों की संख्या में उमड़ आती है ,और श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर देव दर्शन के लिए पैदल इस स्थान पर आते हैं।


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रीति रिवाज और सच्ची श्रद्धा के साथ अटूट विश्वास 

क्षेत्र के अधिष्ठाता बड़ादेव कमरूनाग में आयोजित किए गए मेले के लिए पुलिस और प्रशासन ने तैयारी आरंभ कर दी है। देव कमरूनाग के दर्शन से आशीर्वाद लेने के लिए सरनाहुली मेले में प्रदेश भर के हजारों श्रद्धालु आते हैं। सरनाहुली मेले में प्रदेश भर के सैकड़ों लोग अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाते हैं। पहाड़ी शैली से निर्मित कमरूनाग झील के किनारे देवता का प्राचीन मंदिर भी है। जहां पत्थर की प्रतिमा स्थापित की हुई है। मेले के दौरान बड़ा देव कमरूनाग के प्रति आस्था का महाकुंभ उमड़आता है। हर श्रद्धालु के मन में कोई ना कोई कामना जरूर रहती है, चाहे फिर वह निसंतान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति की चाह हो या फिर सुख-सुविधा की मनौती या अपनों के लिए सुख-शान्ति जो श्रद्धालुओं को मिलों पैदल चढ़ाई चढ़कर इस पवित्र स्थान तक पहुंचा देती है। काफी लोग अपनी मनोकामना पूरी होने पर झील के अंदर नोट, सिक्के और हीरे जवाहरात चढ़ाते हैं।


प्रशासनिक गतिविधियां

हर वर्ष इस मेले को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रशासन की तरफ से भरपूर सहयोग आराध्य देव बड़ा कमरूनाग जी को मिलता है। प्रशासन की तरफ से समय-समय पर पुलिस की मदद व अन्य प्रशासनिक सेवाएं, जैसे- VVIP सेवाएं, स्थानीय लोगों के प्रति संवैधानिक सेवाएं व किसी भी प्रकार की असंवैधानिक गतिविधियों को रोकने के लिए काफी संख्या में पुलिस नौजवानों को इस मेले के लिए जिला प्रशासनिक अधिकारी मंडी की तरफ से तैनात की जाती है।

मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाया जाता है, सोना-चांदी 

औरतें मनोकामना पूरी होने पर अपने सोने, चांदी के जेवर झील में अर्पित कर देती है। देव कमरूनाग के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है, कि झील में सोना-चांदी और मुद्रा अर्पित करने की यह परंपरा कई सदियों से चलती आ रही है। देव कमरुनाग कि यह झील आभूषणों से भरी हुई है। अपने आराध्य के नाम से झील में भेंट चढ़ाने का भी एक शुभ समय है। मेले में मौजूद लोगों के लिए लंगर की व्यवस्था भी सुचारू रूप से चलाई गई है।


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