दांतों की समस्या और समाधान- Dental Problems and Solutions
दांत हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण है, यह बताने की जरुरत नहीँ। दांतों की देखभाल बहुत जरूरी है क्योंकि यह हमारी सेहत को सही रखने में सहायक होते हैं इनके प्रति लापरवाही दांत की कई समस्याओं के रूप में उभर आते हैं जबकि उनसे बचा जा सकता है।
आज हम अपने लेख मे दांतो से जुड़ी समस्याओं और उनके बचाव के तरीकों को बताने जा रहे हैं।
1. दांतों में दर्द- Toothache
दांतों में दर्द सामान्य समस्या है इसके लिए लोग कभी लॉन्ग का तेल इस्तेमाल करते हैं तो कभी पेन किलर खाने तक की नौबत आ जाती है इसकी वजह क्या है और इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकती है?
दांतो मे दर्द कोई बीमारी नहीं है यह एक लगता है हमें यह देखना है कि दर्द किस की वजह से हो रहा है इसके लिए डॉक्टर परीक्षण करके पता लगाते हैं मोटे तौर पर यह देखें तो दांत में कीड़ा लगना या कैविटी होना दांत का क्षरण होना इसके मुख्य कारण होते हैं बैक्टीरिया कैविटी ले धीरे-धीरे पनपता रहता है शुरूआत अवस्था में इसमें कोई दर्द नहीं होता है सिर्फ खाना फंसता तो इसे हम इगनोर है करते है लेकिन जब दांत गलता हुआ थोड़ा भीतर तक पहुंच जाता है तो कीड़ा दांतों के भीतर के सेसेटिव पारस पलप और नवस तक पहुंच जाता है।
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दांतो के ऊपरी स्तर पर कोई नवर्स नहीं होती है इनेमल में कोई ब्लड सप्लाई नहीं होता है। यह एक डेड पार्ट है जब कीड़ा इनेमल में होता है तो पता ही नहीं लगता दांतों में दर्द तब होता है जब कीड़ा गहरा हो जाता है। दांतों में दर्द कई किस्म के होते हैं कई बार मीठा मीठा दर्द होता ,है कुछ बर्दाश्त से बाहर होता है, कई बार लगातार होता रहता है तो कई मामलों में रुक रुक कर होता है कुछ लेटने पर होता है। खड़े होने पर नहीं होता, कई बार सुई की तरह चलता हुआ दर्द हो होता है।
डॉक्टर दर्द के प्रकार ड्यूरेशन,इंरेंसिटी से पता लगाते हैं कि दर्द किस रोग के कारण हो रहा है।
दांतों में दर्द का मुख्य दूसरा मुख्य कारण है मसूड़ों की नसों का रोग यह बहुत आम बीमारी है जो हमारी लापरवाही के कारण होते हैं हमारा दांतो के प्रति रवैया बचपन से सही नहीं होता हम दांतो की छोटी मोटी बातों को इग्नोर करते रहते हैं इसी दांत मसूड़े और तत्वों को जकड़े जबड़े से जोड़ने वाले तंत्र सब में इंफेक्शन हो जाता है इससे हड्डी घुलने लगती है मसूड़े कमजोर हो जाते हैं इसमें कुछ भी खाना खाने पर फंस जाता है अंदर फंसा खाना धीरे धीरे सड़ता रहता है जिसे बैंक्टीरिया पनपने लगता है जो टॉक्सिन पैदा करते हैं टॉक्सीन की वजह से पूरे मुंह में इंफेक्शन हो जाता है मसूड़ों की बीमारी जिसे शुरू में जिंजावाइटिस कहते हैं जो बाद में पायरिया के रूप में सामने आती है इससे भी दांतों में दर्द होता है दांतों की दांतों में कीड़ा लगने से जो दर्द होता है वह उसी दांत में होता है जबकि असुरों के रोग से होने वाला दर्द सारे दांत ओं में महसूस होता है इसके अलावा मुंह में कई अन्य अंग जैसे जीभ, गाल,तालु वगैरह होते हैं जिनमें बैक्टीरियल फंगल या वायरल इंफेक्शन हो जाता है जो दांतों में दर्द को की वजह बन सकता है
2 संवेदनशील- Sensitive
कुछ लोगों के दांत बेहद संवेदनशील हो जाते हैं कुछ भी ठंडा या गर्म खाने पर भी परेशान हो जाते हैं यह क्यों होता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
इन दिनों हम जाने-अनजाने बहुत सी ऐसी आदतों के शिकार हो गए हैं जो हमारी दांतो के लिए कतई सही नहीं है हम कोला ड्रिंक पीते हैं जिसमें कार्बनिक एसिड होता है यह एसिड धीरे-धीरे दांतों की निकली सतह को गलाता रहता है इससे दांतों के नवर्स एक्सपोज हो जाते हैं। दूसरा हम कई बार दांतों की सफाई सही तरह से नहीं करते हमारे टूथ ब्रश के ब्रिसल्स रस्सी की तरह हो चुके होते हैं और हम उसे दांतों पर रगड़ते रहते हैं गांव में अभी भी मंजन वगैरह का इस्तेमाल करते हैं जो हमारे दांतो को घिस कर एक्सपोज कर देते हैं ऐसा सालों से चलता आ रहा है जिसे हमारे दांत एक्सपोज होकर संवेदनशील हो जाते हैं।
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फिर ठंडा गरम खाने पीने की चीजें या एसिडिक या अल्कली खाना एक्सपोज हो चुकी नवर्स को स्टिमुलेट कर देते हैं इससे सेंसटिविटी होती है।
सेंसेटिविटी का एक और कारण हमारा आज का टाइम टिकी खानपान है हम आजकल शुगर कंटेंट से बड़ी चीजें को खाते हैं मेरी चीजें या कुछ भी खाकर मुंह साफ नहीं करते जिससे मुंह में पहले से मौजूद लाखों बैक्टीरिया दांतो के एक्सपोर्ट होने की वजह बनते हैं और दांत सेसेटिव हो जाते हैं इस तरह सेंसटिविटी भी एक लक्षण है और यह दांतों घिसने से हुई है ,मसूड़ों के रोग से हुई या दांतों में क्रैक आ जाने से हुई है, डेंटिस्ट इसका पता लगाकर इलाज करते हैं।
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3. दांतों का रंग बदलना- Tooth Discoloration
कई बार दांतो का रंग बदल जाता है कुछ लोगों के दांत सफेद ना होकर हल्के पीले हो जाते हैं ऐसा क्यों होता है?
दांतों का रंग बदलना एक कुदरती प्रक्रिया है हम कोई बच्चा गोरा जन्म लेता है लेकिन समय के साथ उसकी स्कीम कारण धीरे-धीरे गेहूंआ हो जाता है उसकी उसी तरह दांत कम उम्र में हल्के रंग के होते हैं जो उम्र के साथ गहरे रंग के हो जाते हैं अगर किसी के 50 साल की उम्र में सफेद है तो वह नकली है आम व्यक्ति को दांतों के रंग को लेकर फिक्र करने की जरूरत नहीं है दूसरा हमारे खान-पान में हल्दी का ज्यादा प्रयोग होता है जो दांतों के रंग पर असर डालता है विदेशों में हल्दी का प्रयोग ज्यादा नहीं होता सिर्फ हल्दी ही नहीं दूसरे मिर्च मसाले भी हमारे भोजन में काफी होते हैं हम पूरी जिंदगी इसी तरह का तेल मसाले वाला भोजन करते रहते हैं जिससे दांत ओं का रंग गोरा हो जाता है हम चाहे भी बहुत पीते हैं जो भी दांतों को स्टेन करती है।
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स्टेनिग दो तरह की होती है
एक तो बाहरी आवरण का रंग बदल जाता है इसे क्लीनिंग, और पॉलिशिंग की सहायता से साफ किया जा सकता है। दूसरा परमानेंट स्टेन हो जाता है। इससे दांतों के अंदरूनी भाग का रंग बदल जाता है गांव में अभी भी लोग कुएं का पानी पीते हैं जिसमें फ्लोराइड की मात्रा अधिक होती है इसमें भूरे रंग का स्टेन होता है,जिसेबॉटल्ड स्टेन कहते हैं यहां दांतो के अक्षर को भी बदल देता है लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह के तत्वों के रंग को बढ़िया नहीं किया जा सकता जिस तरह लकड़ी पर सनमाइका लगाकर इसका रंग बदल जाता है उसी तरह आजकल दातों पर लेमिनेशन किया जा सकता है उन पर बर्नियर करते हैं क्राऊन लगा देते हैं कैपिंग कर देते हैं और दांतो को ओरिजिनल रंग मिल जाता है
4. दांतों का भुरभुरा होना- Fraying of Teeth
कई लोगों के दांत झड़ने लगते हैं भुर भुरे हो जाते हैं इसे कैसे बचा जा सकता है।
दांतो का झड़ना या भुरभुरा होना अपने आपमे कोई रोग नहीं ,दांतो की देखभाल अच्छी तरह से ना करने से उपजी सिथतियां है। अगर इनकी देखभाल अच्छी तरह से ना की जाए तो इनमे ऐसी दिखते आती है ,हां अगर ऐसा हो जाए तो भी घबराने की बात नहीं है ।आप अपने डेंटिस्ट के पास वर्ल्ड क्लास मटीरियल है जैसे किसी भी दांत का आकार ,साइज ,शेप, टेक्सचर ,कलर सब कुछ बदल सकता है ऐसी मटेरियल है जैसे दांतो की वाइंडिंग बिल्कुल पक्की हो जाती है पहले दांतो की फीलिंग चांदी से करते थे जो दांत से जुड़ती नहीं थी लेकिन आजकल बिल्कुल असली दांत जैसे मटीरियल से फिलिंग की जाती है जो दांतो से पूरी तरह बॉन्ड हो जाती है।जीकोनिया ,सिरेमिक्स की फिलिंग आती हैं।
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5. बदबूदार सांसे-Bad Breath
बदबूदार स सांसे बहुत आम दिक्कत है इससे व्यक्ति कई बार हीन भावना का शिकार हो जाता है। लोग पास आने से कतराते हैं। सबसे बड़ी बात उनकी सांसो में बदबू है, उसे इसका पता ही नहीं होता क्योंकि वह डॉक्टर के पास नहीं गया होता है। उसे पता नहीं कि उसे उसके मसूड़े खराब है,ओरल हाइजीन की नहीं है। वह जीभ साफ नहीं करता। अच्छी तरह से ब्रश नहीं करता,बदबू पैदा करने वाले बहुत सारे ववैक्टीरिया जीभ पर होते हैं जीभ को भी अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। कई लोग इस भ्रम में रहते हैं कि पेट खराब होने पर मुंह से बदबू आती है ऐसा नहीं है 95% कारण ओरल हाइजीन ही है दांतों में खाना फंसने, मसूड़ों के रोग इसके कारण है डेंटिस्ट से चेकअप करा कर उपचार लेने और ओरल हाइजीन मेंटेन करने से यह समस्या दूर हो जाती है।
6. दांतों में कैविटी-Cavities in the teeth
दांतों में कैविटी होने पर डेंटिस्ट अक्सर आरसिटी कराने की सलाह देते हैं। यह कैसी प्रक्रिया है और कितनी कामयाब है?
आरसीटी दांतो को बचाने का बहुत ही नायाब तरीका है। पुराने जमाने में लोग दांत में कीड़ा लगने पर उसे निकलवा लेते थे, लेकिन दांत निकलवा देना इलाज नहीं है, दांत बचाना इलाज है। हमारे 32 दांत हैं, और हर दांत जरूरी है। अगर एक भी दांत निकल गया तो पूरी बत्तीसी हिल जाती है। आप पहले से ही सतर्क रहें तो आज आरसीटी कराने की नौबत नहीं आती। हम आईने में देख कर पता कर ले की दांत में कीड़ा लग गया है तो उसकी फीलिंग कराकर दांत को और खराब होने से बचा सकते हैं।
लेकिन शुरू में लापरवाही हुई तो दांत इतने अंदर तक खराब हो चुके होते हैं, की फीलिंग नहीं हो सकती। ऐसे में दांत बचाने का एकमात्र उपाय आरसीटी ही है, जो बहुत ही सरल और प्रभावी प्रक्रिया है। इसमें डेंटिस्ट दांत के अंदर के नर्वस, पल्प सब कुछ निकाल देते हैं दांत बाहर से तो लिविंग रहता है, जबकि दांत के अंदर फीलिंग करके सटरलाइज कर देते हैं। इससे दांत कुदरती तरीके से काम करता रहता है कई बार दांत इतने खराब हो चुके होते हैं, कि उन पर कैप लगानी पड़ती है इससे दांत मजबूत हो जाते हैं। आरसीटी कराने से किसी किस्म का नुकसान नहीं होता। आज करोड़ों लोग आरसीटी रोज हो रहे हैं।
आजकल डेंटिस्ट्री में कंप्यूटर की मदद ली जा रही है। अगर दांत निकल भी जाए तो कंप्यूटर ऐडेड डिजाइन और कंप्यूटर ऐडेड मैन्युफैक्चरिंग से दांतो के कैप बनाए जाते हैं, जो बिल्कुल असली दांत दिखते हैं। आप इप्लांट लगा सकते हैं, जो नकली दांतों को सपोर्ट करता है।
7. उबड़ खाबड़ दांत या टेढ़े मेढ़े होना- Having rough teeth or crookedness
उबड़ खाबड़ दांत या टेढ़े मेढ़े होना आम समस्या है। बच्चे के दांत एक पेरेंट्स से आते हैं और जबड़े दूसरे पेरेंट्स से आते हैं। ऐसे में कई बार दांत बड़े हो जाते हैं, और जबड़ा छोटा और कई बार जबड़ा बड़ा और दांत छोटे हो जाते हैं। दांतों के टेढ़े मेढ़े आने का यही कारण है।
जब जबड़ा छोटा होता है तो दांत टेढ़े-मेढ़े होते हैं और जबड़ा बड़ा हो तो दांतो के बीच में गैप आ जाता है आज 11-12 साल तक सारे पक्के दांत आ जाते हैं, और दूध के दांत गिर जाते हैं। जब पके दांत आ जाए तो दांतों में तार लगाकर इसे दुरुस्त करते हैं। जब दांतो के लिए जगह ही जरूरत होती है तो प्रीमोलर दांत को निकाल देते हैं इससे इसी तरह की दिक्कत नहीं होती। बहुत सी नई चीजें आ गई है जैसे कंप्यूटर से बनाया गया अलाइनर जिससे पहनने से दांत सीधे हो जाते हैं। आज 35-40 की उम्र में भी टेढ़े मेढ़े दांत भी ठीक करा सकते हैं। टेढ़े मेढ़े दांत सिर्फ देखने में ही बुरे नहीं लगते, इनमें कीड़ा भी लग सकता है, इन्फेक्शन भी हो सकता है इसलिए इनको ठीक कर आना बहुत जरूरी है।
नोट: किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य संबंधित समस्या को दूर करने या बीमारी से राहत पाने के लिए अपने डॉक्टर या विशेषज्ञ की सलाह अवश्य ले लें। किसी तरह की दवाई का इस्तेमाल करने या किसी घरेलू उपचार को करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।
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