बेटा बेटी एक समान, घर से करें शुरुआत Beta Beti ek Saman in Hindi
बेटा हो या बेटी दोनों को समान दर्जा देने के लिए हमें सबसे पहले घर से इसकी शुरुआत करनी होगी। इसके पश्चात ही हम समाज के लोगों में इस बात के लिए जागरूकता ला पाएंगे। हमें अपने घर में बेटा हो या बेटी, छोटे भाई हो या बहन, इस बात के लिए समझाना होगा कि लड़का लड़की में कोई अंतर नहीं होता। सबसे पहले हमें अपने घर परिवार में ही बेटा बेटी के बीच के अंतर को खत्म करना पड़ेगा। तभी हम समाज के लोगों को अच्छी तरह से जागरूक कर पाएंगे।
बेटा बेटी एक समान पर निबंध
बचपन से बराबरी की बात
अनजाने में हम बचपन से ही बेटी बेटे के अलग-अलग काम का चयन कर देते हैं। जब हम अपनी बेटी को बेटे से बराबर नहीं समझेंगे तो वे बराबरी का पाठ कैसे पढ़ेंगे?
बचपन से ही हम लड़के और लड़की के कार्य में भिन्नता गिनाना शुरू कर देते हैं, जैसे कि कई बार देखा गया है कि यदि घर में कोई मेहमान आता है तो हम अपनी बेटी को कहते हैं, कि जा जरा चाय बना दे और फिर बेटे को कहेंगे, की दुकान से बिस्किट और नमकीन के पैकेट ले आओ। बचपन से ही हम कुछ खास कार्यों के लिए बेटी को कहते हैं, और कुछ अलग कार्यों को बेटी को कहते हैं। जैसे यदि हमें कॉलेज की फीस, बिल आदि कार्य करने हो तो हम बेटे को कहते हैं, और यदि घर की सफाई करनी हो, या भोजन तैयार करना हो तो बेटी ही करेगी।
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इससे बड़े होते होते हम बेटी और बेटे की भूमिकाएं निर्धारित कर देते हैं। भेदभाव की यह खाई अनजाने में ही धीरे-धीरे बढ़ती जाती है। जब की आवश्यकता दोनों को एक दूसरे का पूरक बनाने की है, यानी बेटी को बाहर के काम आने चाहिए तो बेटे को भी घर में साफ सफाई, पोच्छा लगाने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। अगर आपने भी अभी तक इस बात पर ध्यान नहीं दिया है तो सोचे और बेटी बेटे में समानता का भाव पैदा करें। ऐसा करने से बेटी के मन में हीनता की भावना उत्पन्न नहीं होगी। आज के समय में लड़की को लड़के की बराबरी का दर्जा दिया गया है। यह बराबरी तभी संभव है, जब हम बेटी बेटे में समानता लाएंगे।
पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही काम
अधिकतर घरों में बिजली का बिल, पानी का बिल, बीमा पॉलिसी की किस्त जमा कराना, पिता या बेटे का ही कार्य माना जाता है। यह उनकी एक तरह की जिम्मेदारी बन जाती है, कि उस कार्य को वह करेंगे ही करेंगे। महिलाएं तो केवल घर के कामों में ही लगी रहे तो ही अच्छी मानी जाती है। महिलाओं का कार्य तो केवल पुरुषों को ही याद दिलाना होता है, कि उन्हें कौन-कौन से कार्य करने हैं यह परोक्ष रूप से संदेश देती है कि यह काम पुरुषों के लिखी है इसके विपरीत कोई मेहमान आए तो चाय बेटी बनाएगी फिर चाहे मायावती की सहेली आए या पिताजी के दोस्त आए ऐसे में उनका कार्य उनकी सेवा करना होता है और ऐसे में समाज में यह संदेश जाता है कि महिलाएं घर का ही कार्य करें। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।
काम का बंटवारा
हमें अपने व्यवहार में बच्चों में यह संस्कार देने हैं, कि कोई भी काम बेटा या बेटी हो, कोई भी कर सकता है। किसी कार्यों को करने में संकोच नहीं करना चाहिए। इसके लिए जब हम छुट्टी के दिन घर में सफाई करें, तो बेटे को भी पोछा लगाने को कहें, कभी-कभी उससे बर्तन भी साफ करवाएं। अपने कपड़े धोने की आदत डलवाएँ, क्योंकि कॉलेज में हॉस्टल में उसे अकेले ही रहना पड़ता है। वहां ना तो उसकी मां होगी और ना ही बहन।
इसी तरह से बेटी के कार्य ने भी बदलाव लाना चाहिए। बेटी को भी बाहर के काम के लिए भेजे, चाहे फोटो कॉपी करवानी हो, स्कूल की फीस देनी हो, बिजली गैस का बिल भरना, बैंक का कोई काम हो या फिर आसपास की दुकान से सब्जी अथवा अन्य कोई सामान लाना हो, इससे वहां उसे नई जानकारियां मिलेगी और उसके मन में जो हिचकिचाहट भरी होती है वह भी खत्म हो जाती है।
बेटी के हंसने पर रोक क्यों?
मनुष्य तभी मनुष्य होता है जब उसमें भावात्मक सक्रियता हो, संवेदनाएं हो, लेकिन आप कभी बेटी को जोर से हंसने से रोकते हैं, तो कभी बेटे को रोने नहीं देते। उसे लड़कियों की तरह रोने का उलाहना देते हो। 'मर्द को दर्द नहीं होता' जैसे डायलॉग बोलकर उसे लड़कियों से सुपर बताते हो। बेटे को भी खुश और दुख अनुभव करने दे। खुशी में हंसने की आजादी तो आप देते हो लेकिन दुख में रोने की आजादी नहीं देते यदि वे दर्द पर रोते हैं तो लड़कों को कहा जाता है, कि लड़के तो ताकतवर होते हैं। दर्द नहीं होता। ऐसी भावनाओं से उनकी मानसिकता में बदलाव आता है। दूसरी तरफ लड़की को कहते हैं कि वे गुस्सा ना करें, जोर-जोर से हंसे ना, जोर-जोर से बातें ना करें आदि जैसी रोक-टोक हम लगाते हैं, यदि आप भी अपने घर में इस तरह से लड़के और लड़की के कार्यों को अलग-अलग करते हैं तो यह उनके लिए बहुत ही गलत बात है। इससे आप अपने बच्चों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं। यदि हम उन में समानता की भावना लाते हैं तो उनके व्यक्तित्व में भी निखार आता है। समानता की भावना बचपन से ही बनी रहती है।
निष्कर्ष Conclusion
हमारे समाज में आज भी कहीं ना कहीं लोगों के जहन में यह सोच है, कि लड़कियां लड़कों से कम होती है। लेकिन हम सब को एकजुट होकर बदलते समय के साथ-साथ इस अंतर और सोच को खत्म करना पड़ेगा। आज के समय में लड़कियां लड़कों के बराबर ही है। बस हमें उनके हौसलों की उड़ान को हवा देने की जरूरत है, फिर आप देखेंगे कि लड़कियां कैसे आसमान छू जाती हैं।
अंतिम शब्द
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