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वैसाखी 2025, वैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? Vaisakhi 2025 in Hindi

वैसाखी 2025, वैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? Vaisakhi 2025 in Hindi 


हमारा भारतवर्ष त्योहारों का देश है। यहां पर अनेक धर्मों के लोग रहते हैं। सभी धर्मों के लोग अपने-अपने त्योहारों को अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। इस तरह से साल भर में हर दिन कोई ना कोई त्यौहार किसी ना किसी धर्म को मानने वाले लोगों के लिए बहुत ही खास होता है। ठीक इसी प्रकार 13 या 14 अप्रैल का दिन भी सिख धर्म के लोगों के लिए बहुत खास होता है। वैसाखी के त्यौहार को फसल का त्यौहार भी कहा जाता है। बसंत ऋतु की शुरुआत के रूप में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है। वैसे तो पूरे भारत में वैसाखी का त्यौहार बड़ी खुशी और हर्षोल्लास से मनाया जाता है, लेकिन पंजाब और हरियाणा में वैसाखी का विशेष महत्व है। यह त्यौहार केरल, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, तमिलनाडु, उड़ीसा में महा विष्णु के रूप में और कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगादी के रूप में मनाया जाने वाला त्यौहार है।
वैसाखी का त्यौहार से सिखों के लिए बहुत महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। वैसाखी पर्व में सिख धर्म के नए वर्ष की शुरुआत होती है।

2025 में वैसाखी कब है? Vaisakhi 2025 in Hindi 

वैसाखी का पर्व सिख धर्म के लोग नए साल की शुरुआत के रूप में मनाते हैं। वर्ष 2025 में यह पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। हमारा भारतवर्ष एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए इस त्यौहार को फसलों के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इसमें रबी की फसल की कटाई होती है। यह त्यौहार पंजाब और हरियाणा में विशेष रूप से मनाया जाता है। पंजाब में इस दिन लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं। सभी लोग रिश्तेदारों और मित्रों के साथ मिलकर इस त्योहार का भरपूर आनंद लेते हैं

वैसाखी कहां मनाई जाती है? Where is Vaisakhi Celebrated in Hindi?

उत्तर भारत के अलावा सिख और पंजाब यूके और दुनिया के अन्य देशों में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है। पंजाब में लोक नृत्य भांगड़ा और अन्य जगहों में आयोजित किए जाने वाले मेलों की बहुत विशेषता है।। 

वैसाखी क्यों मनाई जाती है? वैसाखी का इतिहास और महत्व History of Vaisakhi in Hindi

वैशाखी के त्यौहार को लेकर बहुत सारी कथाएं प्रचलित हैं, आपको हम यहां पर मुख्य दो कथाएं बताया रहे हैं:

पहली कथा
बात 1699 की है, जब सिखों के गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने सभी सिखों को आमंत्रित किया था। उनका आदेश सुनते ही सब धर्मों को अपनाने वाले लोग आनंदपुर साहिब के मैदान में इकट्ठे हो गए। यहां पर गुरु गोविंद सिंह जी के मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने की इच्छा जागृत हुई। उन्होंने कमान से अपनी तलवार को निकालते हुए बोला कि 'मुझे सिर चाहिए'। गुरु जी के ऐसे वचन सुनते ही सारे वक्त हैरान हो गए, परंतु इसी बीच लाहौर के रहने वाले एक व्यक्ति दयाराम ने अपना सिर गुरु गोविंद सिंह जी की शरण में रख दिया। गुरुजी उसे अपने साथ अंदर लेकर चले गए और उसी समय अंदर से रक्त की धाराएं प्रवाहित होती हुई दिखाई दी। वहां पर मौजूद सभी को यही महसूस हुआ कि दयाराम का सिर कट चुका है। गुरुजी फिर से बाहर आए और उन्होंने दोबारा अपनी तलवार दिखाते हुए कहा कि मुझे सिर चाहिए। इस बार सहारनपुर के रहने वाले एक व्यक्ति धर्मदास आगे आए। उन्हें भी गुरुजी अंदर लेकर चले गए और फिर से खून की धाराएं बहती हुई दिखाई देने लगी। इसी तरह तीन और लोगों को जगन्नाथ निवासी हिम्मत राय, मोहक चंद निवासी द्वारका तथा विदर निवासी साहिब चंद ने अपना सिर गुरु की शरण में अर्पित कर दिया। वहां एकत्रित हुए सभी लोगों को यही लगा कि इन पांचों की बलि दे दी गई है। परंतु इतने में गुरु जी इन पांचों को अपने साथ लेकर बाहर की तरफ आते हुए दिखाई दिए। गुरु गोविंद सिंह जी ने वहां पर उपस्थित सभी को यह बताया कि इन पांचों की जगह अंदर पशु की बलि दे दी गई है। मैं तो सिर्फ इनकी परीक्षा ले रहा था और यह लोग इस परीक्षा में सफल भी हुए। इस प्रकार गुरु जी ने अपने 5 प्यादों के रूप में इनको परिचित करवाया और इन्हें अमृत रसपान भी करवाया और उन्होंने कहा कि आज से तुम लोग सिंह कहलाओगे, और उन लोगों को दाढ़ी और बाल रखने के निर्देश दिए गए और कहा कि बालों को संवारने के लिए वह लोग कंघा अपने साथ रखें। अपनी रक्षा के लिए कृपाण रखें। कच्छा धारण करें और हाथों में कड़ा पहनें। गुरु जी ने अपने शिष्यों को निर्बलों के ऊपर हाथ ना उठाने के निर्देश दिए। इस घटना के बाद ही गुरु गोविंद राय, गुरु गोविंद सिंह जी कहलाए, और सिखों के नाम के साथ भी सिंह शब्द जुड़ गया। इसीलिए यह दिन खास हो गया।

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दुसरी कथा

वैशाखी से संबंधित दुसरी कथा
पांडवों के समय की बात है, जब पांडव वनवास के समय पंजाब के कटराज स्थल पहुंचे। तब उन्हें बहुत प्यास लगी। युधिष्ठिर को छोड़कर सभी भाइयों ने यक्ष के मना करने के बावजूद भी पानी पिया। तभी उन चारों की मृत्यु हो गई। बहुत देर हो जाने पर जब युधिष्ठिर को लगा कि कोई भी अभी तक वापस नहीं आए, तो वह स्वयं ही उनको देखने के लिए उस तालाब के पास जा पहुंचे। युधिष्ठिर भी पानी पीने वाले ही थे। तभी यक्ष फिर से आए और युधिष्ठिर से कहा पानी पीने से पहले तुम्हें मेरे प्रश्नों के उत्तर देना होगा। उसके पश्चात भी आप पानी पी सकते हो। यक्ष प्रश्न पूछते गए और युधिष्ठिर से उत्तर देते रहे। इस बात से यक्ष प्रसन्न होकर फिर यक्ष ने चारों भाइयों के मृत होने की वजह बताइ, और कहा कि आप सिर्फ किसी एक भाई को जीवित करवा सकते हैं, तो युधिष्ठिर ने सहदेव को फिर से जीवित करने की प्रार्थना की है। यह सुनकर यक्ष ने कहा कि आपने अपने सभी भाइयों को छोड़कर अपने सौतेले भाई को पुनर्जीवित करने को क्यों कहा? तभी युधिष्ठिर ने कहा कि माता कुंती के 2 पुत्र जीवित रहेंगे और माता माधुरी का एक भी नहीं। अच्छा तो यह होगा कि दोनों माताओं के एक-एक पुत्र जीवित रहे। युधिष्ठिर की इस बात से यक्ष बहुत प्रसन्न हुआ, और उसे चारों भाइयों को जीवित कर दिया। तब से इस नदी के किनारे बहुत बड़ा मेला लगता है और जुलूस भी निकाला जाता है, और इस जुलूस में पांच प्यादे नंगे पैर सबसे आगे चलते हैं, और बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है।

वैसाखी का महत्व Importance of Vaisakhi in Hindi

वैसाखी का त्योहार सिखों के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ने पवित्र खालसा पंथ की स्थापना की थी, गुरु गोविंद सिंह जी ने लोगों को अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने लोगों के प्रति जोखिम को वीरता से सुलझाने को कहा। उन्होंने आनंदपुर में सिखों का संगठन बनाने के लिए लोगों को इकट्ठा किया तथा इसी सभा में तलवार उठा कर लोगों को पूछा कि वह कौन बहादुर योध्दा है, तभी एक व्यक्ति आया गुरु गोविंद सिंह जी ने उन्हें अपने साथ पंडाल में ले गए फिर रक्त वाली तलवार लेकर वापस आए। फिर, फिर से वही सवाल पूछा, फिर एक और सेवक आया। इस प्रकार एक-एक करके 5 लोग सामने आए, जो पाँच प्यारे कहलाए। इन्हें खालसा पंथ का नाम दिया गया।


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वैसाखी नाम क्यों पड़ा? Why was it Named Vaisakhi in Hindi?

वैसाखी त्योहार पर आसमान में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण ही इस माह को वैसाखी कहते हैं। वैसाख महीने के पहले दिन वैसाखी मनाई जाती है। इस दिन मेष राशि में सूर्य प्रवेश करता है। इसी कारण इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है। यह घटना प्रतिवर्ष 13 या 14 अप्रैल को ही घटित होती है।

वैसाखी कैसे मनाई जाती है? How is Vaisakhi Celebrated in Hindi?

वैसाखी को विशेष रुप से गुरुद्वारे या फिर किसी बड़े मैदान में मनाया जाता है, ताकि भांगड़ा और नृत्य किया जा सके।
इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके गुरुद्वारे में आते हैं।
वैसाखी के दिन गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी के स्थान को शुद्ध दूध व जल से साफ किया जाता है। फिर पवित्र किताब को ताज के साथ उस पवित्र किए हुए स्थान में रखा जाता है।
उसके पश्चात किताब को पढ़ा जाता है, सभी गुरुवाणी ध्यान लगाकर सुनते हैं।
सभी पंक्ति लगाकर 5 बार अमृत को ग्रहण करते हैं। अंत में सभी मिलकर लंगर ग्रहण करते हैं।


FAQ:

Q.  2025 में बैसाखी कब है?
Ans. 13 अप्रेल।

Q. बैसाखी का पर्व कहां मनाया जाता है?
Ans. पंजाब और हरियाणा में।

Q. वैसाखी पर्व में क्या-क्या पकवान बनाए जाते हैं?
Ans. सरसों का साग एवं मक्के की रोटी हलवा और पूरी।

Q. बैसाखी का पर्व कैसे मनाया जाता है?
Ans. इस पर्व में काफी जगहों पर मेरे लगाए जाते हैं, जिसमें काफी दुकाने, झूले और बहुत सारी चीजें होती हैं।

Q. बैसाखी का पर्व कौन से धर्म के लोग मनाते हैं?
Ans. सिख धर्म के लोग।

Q. 2025 में बैसाखी पूजा का समय और तारीख क्या है।
Ans. बैसाखी का त्यौहार एक मौसमी त्यौहार है। यह त्यौहार 13 अप्रैल को मनाया जाता है। मुख्य रूप से वैसाखी को सिखों का त्योहार कहा जाता है, जो कि सिखों के लिए नए साल का प्रतीक है।

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