समाज़ में महिलाओं की भूमिका और बढ़ता परिवर्तन, Role of women in society in Hindi
सिर्फ़ जरूरत है नजरिए में बदलाव लाने की......
समाज बदल रहा है और हर फील्ड में कामयाबी हासिल करने वाली स्त्रियों ने यह साबित कर दिया है, कि वह किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं है।...... लेकिन कुछ लोग आज भी उनके प्रति वही पुरानी सोच रखते हैं। क्यों होता है ऐसा जाने के लिए हमारा यह लेख जरूर पढ़ें।
इनकी तो आदत ही ऐसी होती है..... यह बहुत बातूनी होती हैं...... कोई भी काम ध्यान से नहीं करती.... चाहे घर हो या ऑफिस या फिर आस-पड़ोस। रोजमर्रा की बातचीत के दौरान आपको भी ऐसे जुमले सुनाई देते होंगे। जिन्हें कुछ लोग बिना सोचे समझे यूं ही बोल देते हैं।
हमेशा ऐसा नहीं होता
दूसरों के बारे में जब पहले से ही हमारे मन में कोई निश्चित राय (अच्छी है बुरी) बन जाती है, तो बाद में उस व्यक्ति से संबंधित हर बात हमारी पूर्व धारणा से प्रभावित होती है। जेंडर के अलावा धर्म, जाति, वर्ग और समुदाय को लेकर भी कुछ लोग काफी पूर्वाग्रही (जजमेंटल) होते हैं। मिसाल के तौर पर सड़क पर ड्राइविंग के दौरान अगर आगे वाली कार स्लो स्पीड में हो, ड्राइवर मुड़ने से पहले इंडिगेटर ऑन ना करें या किसी दूसरे गाड़ी को गलत ढंग से ओवरटेक करने की कोशिश करें तो पीछे दूसरी कार में बैठा पुरुष बिना देखे ही गुस्से में बड़बड़ाना शुरू कर देता है। जरूर कोई लेडी ड्राइव कर रही होगी। थोड़ी दूर आगे जाने के बाद ऐसा कहने वाले व्यक्ति की बात भले ही गलत साबित हो जाए, लेकिन वह अपनी इस गलत धारणा को बदलने की कोशिश नहीं करता, कि स्त्रियां अच्छी ड्राइविंग नहीं करती।
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भारतीय समाज में पुरुष पहले से ही ऐसा मान लेते हैं कि स्पोर्ट्स, साइंस, टेक्नोलॉजी और फाइनेंस के बारे में स्त्रियों को ज्यादा जानकारी नहीं होती। अभिनेत्री और क्रिकेट कमेन्टटेटर मंदिरा बेदी ने अपने एक इंटरव्यू में ऐसे ही अनुभव का उल्लेख करते हुए कहा था। जब मैं देश की पहली महिला क्रिकेटर बनी तो लोगों को यह बात हजम नहीं हुई। उनके लिए यह यकीन कर पाना मुश्किल था कि कोई स्त्री एक्सपर्ट के तौर पर क्रिकेट के बारे में बातचीत कैसे कर सकती है। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि मैच में ग्लैमर ऐड करने के लिए मुझे कमेंट्री में शामिल किया गया है। ऐसी बातें सुनकर मुझे बहुत दुख होता था, पर मैं हिम्मत जुटा कर अपना काम करती रही।
गहरी है समस्या की जड़ें
Motivational Topic in Hindi दरअसल ऐसी सोच के लिए केवल पुरुष जिम्मेदार नहीं है। बचपन से उनकी परवरिश जिस माहौल में होती है, उसका असर उनकी सोच पर भी पड़ता है। छोटी उम्र से ही लड़कों को एहसास दिलाया जाता है, कि तुम काबिल और शक्तिशाली हो, तुम्हारी बहन कमजोर है, इसलिए तुम्हें उसकी हिफाजत करनी चाहिए। यहां तक कि लड़कों और लड़कियों के लिए खेल खिलौने भी अलग-अलग होते हैं। परिवारों में यह तय होता है कि लड़कियां डॉल और किचन सेट से खेलेंगी। लड़कों को कार गन और वीडियो गेम्स जैसी चीजें दी जाती है। ऐसी स्टीरियोटाइप्ड सोच के बीच पले बढ़े लड़के शुरू से ही खुद को सुपीरियर मानने लगते हैं। उनके मन में अहंकार पनपने लगता है। उन्हें लगता है कि कार, एरोप्लेन और रोबोट जैसी चीजें लड़कियों के लिए नहीं, उनके लिए ही बनी है। ऐसे माहौल में पलने वाले लड़कों के मन में बड़े होने के बाद भी स्त्रियों की ऐसी ही नकारात्मक छवि बसी रहती है। जिसे दूर करना मुश्किल होता है।
नहीं बदला है नजरिया
यह सच है कि स्त्रियां बदलते वक्त के साथ हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं। वे जीवन के हर फील्ड में आने वाले बदलाव के साथ खुद को एडजस्ट करने की पूरी कोशिश भी कर रही है। मगर यह भी सच है, कि पुरुष इस बदलाव को सही ढंग से स्वीकार करने में अभी हिचकिचा रहे हैं। वह बदल तो रहे हैं, मगर इसकी रफ्तार धीमी है और अक्सर उनका पुरुष अहम इसमें आड़े आने लगता है। दरअसल उनके दिलो-दिमाग में आज भी स्त्री की वही पुरानी छवि बसी हुई है। इस संबंध में 75 वर्षीय रोशनी गर्ग कहती हैं, लगभग 15 साल पुरानी बात है, उन दिनों आज की तरह मोबाइल एप्लीकेशन का चलन नहीं था। तब मेरे कॉलेज जाने वाले बेटे के एक दोस्त को पैसों की आकस्मिक जरूरत थी। मैंने फोन पर उससे कहा कि तुम मुझे अपनी अकाउंट डिटेल मैसेज कर दो, मैं अभी पैसे भेज देती हूं। लेकिन उसे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था, कि मैं नेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर सकती हूं। मैंने उसे बड़ी मुश्किल से य़ह भरोसा दिलाया, कि कोई गड़बड़ी नहीं होगी। तब जाकर उसने मुझे अपने बैंक का अकाउंट डिटेल भेजा। यहां गलती उस लड़के की नहीं, बल्कि उस माहौल की है, जिसमें उसकी परवरिश हुई है। बचपन से आज तक उसने अपने घर परिवार में किसी स्त्री को यह सब करते नहीं देखा होगा। इसलिए वह मुझ पर भरोसा नहीं कर पा रहा था।
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मनोविज्ञान की नजर में.........Motivational Topic in Hindi.
लड़कियां आज हर फील्ड में हैं, और उनकी कार्यक्षमता पुरुषों से कम भी नहीं है। कहीं-कहीं तो उनकी परफॉर्मेस लड़कों से बेहतर है, फिर भी ज्यादातर लड़कों की सोच यही है, की जानकारी के मामले में लड़कियां उनसे बहुत पीछे हैं। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार आयुषी शर्मा जी का कहना है.... कि व्यक्ति की सोच इस बात पर निर्भर करती है, कि बचपन में उसकी साइक्लोजिकल कंडीशनिंग किस ढंग से हुई है। दो-तीन साल की उम्र से ही यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है। जब बच्चे छोटी उम्र से अपने घर आस-पड़ोस और स्कूल में स्त्री पुरुष को अलग-अलग भूमिका में देखते हैं। उनके आसपास के लोग स्त्रियों के बारे में जो भी बातें करते हैं। परिवार के पुरुष सदस्य स्त्रियों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं, उन्हीं बातों के आधार पर बच्चे के मन में स्त्री और पुरुष की भूमिका उसके स्वभाव और व्यवहार आदि को लेकर एक ऐसी स्थाई छवि बन जाती है, जिससे साइकोलॉजी की भाषा में 'जेंडर स्कीमाज' कहा जाता है, और किसी इंसान की विचारधारा को बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर आज के पुरुष स्त्रियों को खुद से कमतर समझते हैं, तो ऐसी सोच के लिए परिवार का वह माहौल जिम्मेदार... जिसमें उसकी परवरिश हुई है।
भारतीय समाज परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। जब स्त्रियां अपनी पारंपरिक छवि को तोड़कर उससे बाहर निकलने की कोशिश करेंगी तो ऐसे में पुरुषों की ओर से कुछ नकारात्मक प्रक्रियाएं आना स्वाभाविक है। लेकिन ऐसी बातों से उन्हें घबराना नहीं चाहिए, बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ ऐसी स्थितियों का सामना करना चाहिए।
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क्या है Men's प्लेन What is Mensplane
स्त्रियों के प्रति पुरुषों की ऐसी संकीर्ण सोच को लेकर अक्सर 'मेंसप्लेन' टर्म का काफी इस्तेमाल किया जाता है। इसे अंग्रेजी के 2 शब्दों 'मैन' और 'एक्सप्लेन' को जोड़कर बनाया गया है। यानी जब कोई पुरुष किसी पूर्वाग्रह के आधार पर पहले से ही स्त्री को कमतर समझते हुए, उसे कोई बात सरल तरीके से समझाने की कोशिश करें, तो इसके लिए 'मेंसप्लेन' शब्द का उपयोग किया जाता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि समाज के शिक्षित वर्ग के पुरुषों को अक्सर यह खुशफ़हमी होती है, कि बाहरी दुनिया के बारे में वह अपनी पत्नी से कहीं अधिक जानकारी रखते हैं।
'जेंडर स्कीमाज' किसे कहते हैं? What are 'Gender Schemas' in Hindi?
परिवार के पुरुष सदस्य स्त्रियों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं, उन्हीं बातों के आधार पर बच्चे के मन में स्त्री और पुरुष की भूमिका उसके स्वभाव और व्यवहार आदि को लेकर एक ऐसी स्थाई छवि बन जाती है, जिससे साइकोलॉजी की भाषा में 'जेंडर स्कीमाज' कहा जाता है, और किसी इंसान की विचारधारा को बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
निष्कर्ष Conclusion
आज आपने हमारे इस लेख में जाना "समाज़ में महिलाओं की भूमिका और बढ़ता परिवर्तन" मुझे पूरी उम्मीद है कि आपको जानकारी स्पष्ट हुई होगी। अगर फिर भी आपके कोई सवाल हो, तो आप कमेंट करके पूछ सकते हैं, और यदि आपको हमारा लेख पसंद आया हो, तो इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट या अपने दोस्तों में शेयर जरूर करें।
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